Wednesday, August 27, 2008

यह जिंदगी

आह!! वह क्या ज़िन्दगी थी जब हम सभी मिल-जुल कर रहते थे। कितना प्यार था हम में एक दुसरे के लिए। लेकिन आज हम मतलबी हो चुके है, या शायद पहले से ही हम मतलबी थे मगर हमने उसे उसका नाम नहीं दिया था। आज ज़िन्दगी जिस रफ्तार से आगे की ओर बढ़ रही है, हम उसी रफ्तार से उसके पीछे भाग रहे हैं। किंतु इस रफ्तार को बढ़ने वाला है कौन? क्या यह कोई एक व्यक्ति का काम है? नहीं। इसके जिम्मेदार हम सभी हैं। परन्तु, अब हम इसका कुछ नहीं कर सकते, क्यूंकि, अब हम इसके आदि हो चुके है। अब हमें यही ज़िन्दगी प्यारी लगती है, क्यूंकि शायद हम इसके उपरांत कुछ सोच ही नहीं सकते। परन्तु, अगर हमें यह ज़िन्दगी पसंद है, तो फिर हम इससे इतनी शिकायतें क्यूँ करते हैं? अगर हमें इसका जवाब मिल जाए तो शायद हम हमारी ज़िन्दगी में कुछ सुधार ला सकते हैं।

1 comment:

Ikku said...

Hmmm.... If your faith is strong, then you won't feel like complaining about what happens in your life. From what you wrote, it is clear that you have quite an affinity towards solitude.